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पद से हटने के बाद बाहर आया ओली का सनसनीखेज दावा, बोले- भारत विरोधी रुख…

by admin477351

नेपाल में सुशीला कार्की ने अंतरिम गवर्नमेंट की कमान संभाल ली है. शुक्रवार शाम उन्हें पीएम पद की शपथ दिलाई गयी और अब धीरे-धीरे नेपाल के हालात सामान्य होने लगे हैं. लेकिन एक प्रश्न अब भी बना हुआ है कि पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली कहां हैं? हम आपको बता दें कि मंगलवार को जब ‘जेन-जेड प्रदर्शनकारियों’ ने संसद भवन में घुसपैठ कर ली थी और ओली के निजी आवास में आग लगा दी थी तो उन्होंने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था. जैसे-जैसे जेन-जेड आंदोलन ने स्पीड पकड़ी, नेपाल सेना का एक हेलिकॉप्टर उन्हें एक अज्ञात सुरक्षित जगह पर ले गया.

इसके बाद ओली ने आंदोलनकारियों के नाम एक पत्र लिखा, जिसे उनके प्रेस सचिव ने सार्वजनिक किया. पत्र में उन्होंने दावा किया कि भारत-विरोधी रुख ही उनके पद से हटने की मुख्य वजह बना. ओली ने लिखा, “मैंने हमेशा यह ज़ोर दिया कि हमारे राष्ट्र में काम करने वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को यहां के नियमों का पालन करना चाहिए और दर्ज़ होना चाहिए. मैंने बोला कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के हिस्से हैं. मैंने यह भी बोला कि भगवान श्रीराम का जन्म नेपाल में हुआ था, न कि हिंदुस्तान में जैसा कि शास्त्रों में उल्लेख है. यदि मैं इन बातों पर पीछे हट जाता…” ओली ने ज़ोर दिया कि यदि उन्होंने इन मुद्दों पर समझौता किया होता तो उन्हें “कई और अवसर” मिल सकते थे. उन्होंने यह भी कहा कि वे वर्तमान में शिवपुरी (काठमांडू से लगभग 27 किमी उत्तर) में नेपाल सेना के ऑफिसरों के साथ सुरक्षित जगह पर रह रहे हैं.
इस्तीफ़े के बाद पहली बार खामोशी तोड़ते हुए ओली ने फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा कि नेपाल को भगवान राम की जन्मभूमि बताना और विवादित क्षेत्रों पर दावा करना उनके लिए “ग़ैर-समझौतावादी” मामले हैं. उन्होंने बोला कि भले ही वह पद से हट गए हों, लेकिन इन मुद्दों पर डटे रहेंगे. ओली ने अपनी पार्टी को लिखे खुले पत्र में लिखा, “मेरी प्रकृति कुछ जिद्दी है. यदि ऐसा न होता तो मैं बहुत पहले हार मान लेता. इसी जिद के साथ मैंने सोशल मीडिया कंपनियों पर पाबंदियों की मांग की, नेपाल के मानचित्र को संयुक्त देश में भेजा और हमेशा यह बोला कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा हमारे हैं.”
हालाँकि, ओली का असली ठिकाना अभी भी रहस्य बना हुआ है. कुछ रिपोर्टों में बोला गया कि वह दुबई चले गए हैं, जबकि कुछ में उनके भूमिगत हो जाने की बात कही गई है. लेकिन आधिकारिक तौर पर कुछ भी साफ नहीं है. इस बीच, नेपाल सेना ने बोला है कि राष्ट्र में हालात “नियंत्रण में” हैं, लेकिन उन्हें भी ओली के ठिकाने की जानकारी नहीं है. सेना के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल राजाराम बस्नेत ने कहा, “हमें उनके बारे में कोई सूचना नहीं है.”
बहरहाल, नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली भले आज हिंदुस्तान पर दोषारोपण करते रहें लेकिन वास्तविकता यह है कि ओली का कार्यकाल भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और जन असंतोष से भरा रहा. जनता को रोज़गार और राहत देने की बजाय उन्होंने भावनात्मक नारों से माहौल गरमाने की प्रयास की. उनके चीन-समर्थक रुख ने भी नेपाल की मुश्किलें बढ़ाईं. बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के वादों ने नेपाल पर क़र्ज़ का बोझ तो डाला, लेकिन असली विकास और रोज़गार नहीं ला पाए. साथ ही हिंदुस्तान से संबंध बिगाड़कर उन्होंने नेपाल की उस जीवनरेखा को कमज़ोर किया, जिस पर उसकी अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा निर्भर है.
आज ओली अपने पतन का ठीकरा हिंदुस्तान पर फोड़ने की प्रयास कर रहे हैं. यह रणनीति उन्हें अपने समर्थकों के बीच “विदेशी साज़िश का शिकार” दिखा सकती है. ओली को लगता है कि स्वयं को विदेशी षड्यंत्र का शिकार बता कर वह सहानुभूति अर्जित कर सकते हैं जिससे उन्हें भविष्य में पुनः सत्ता में लौटने का अवसर मिल जाये. लेकिन नेपाल की जनता अच्छी तरह समझती है कि वास्तविक कारण उनकी जिद, ग़लत प्राथमिकताएँ और चीन पर अत्यधिक भरोसा था.
नेपाल को आगे बढ़ने के लिए ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो संतुलन साध सके— न तो भावनात्मक राष्ट्रवाद में उलझे और न ही किसी एक पड़ोसी की छाया में चले. ओली की जिद ने नेपाल को सिर्फ़ अस्थिरता और अविश्वास दिया है. अब समय है कि नेपाल इस बोझ से मुक्त होकर यथार्थवादी और विकासोन्मुख राजनीति की ओर बढ़े.

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